मातृ दिवस और भगवान नरसिंह जयंती की अनेकानेक शुभकामनायें**✨माँ है, तो हम हैं**🌺माँ मात्र एक शब्द नहीं, सम्पूर्ण सृष्टि**🙏🏾स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, 11 मई। परमार्थ निकेतन में आज मातृ दिवस के अवसर पर आज की गंगा आरती माँ, भारत माता और धरती माता को समर्पित की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि “माँ है, तो हम हैं!” यह वाक्य मात्र शब्द नहीं, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि का सार है। माँ केवल जीवन देने वाली नहीं होती, वह जीवन को अर्थ देने वाली, दिशा देने वाली और जीवन को भावनाओं से भरने वाली होती है। माँ की ममता की शक्ति अद्भुत है।
भारत की संस्कृति में माँ का स्थान सर्वोच्च है। वेदों से लेकर आधुनिक विचारधाराओं तक, मातृत्व को देवत्व का दर्जा दिया गया है। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात् माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं।
आज जब हम मदर्स डे मना रहे हैं, यह केवल एक दिन की औपचारिकता नहीं, बल्कि एक अवसर है माँ के महत्व को समझने, उनके बलिदानों को याद करने और उनके चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करने का।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारे जीवन में तीन माताओं का विशेष महत्व है। माँ, जो हमें जन्म देती है। भारत माता, जो हमें संस्कार, संस्कृति और पहचान देती है और धरती माता, जो हमें अन्न, जल, वायु और जीवन देती है। इन तीनों माताओं को समर्पित है आज का दिन।
आज की तेज रफ्तार भरी दुनिया में हम कभी-कभी यह भूल जाते हैं कि हमारे जीवन की जड़ें कहाँ हैं। मोबाइल की स्क्रीन पर माँ की मुस्कान नहीं दिखती, लेकिन वही मुस्कान हमारे जीवन की पहली प्रेरणा होती है। माँ के आँचल में वह सुकून है जो संसार में कही भी नहीं मिलता।
माँ का जीवन त्याग, सेवा, प्रेम और करुणा का सजीव उदाहरण है। वह बिना किसी अपेक्षा के सब कुछ देती है, अपना समय, अपना स्वास्थ्य, अपनी नींद और अपने सपने और बदले में क्या चाहती है? सिर्फ अपने बच्चों का साथ, स्नेह और सम्मान।
स्वामी जी ने कहा कि माँ का हृदय प्रकृति जैसा है, सहनशील, पोषण करने वाला और हर परिस्थिति में प्रेम लुटाने वाला। यदि आज के युवाओं को माँ की सेवा और धरती माता का संरक्षण करना आ जाए, तो दुनिया की अधिकतर समस्याएँ स्वयं हल हो जाएँगी।
माँ सिर्फ व्यक्ति विशेष नहीं, बल्कि एक विचार है, करुणा का, समर्पण का, सेवा का। माँ एक संस्कृति है, जो पीढ़ियों को जोड़ती है। माँ एक शक्ति है, जो टूटे को जोड़ती और बिखरे को समेटती है।
स्वामी जी ने कहा कि आज नरसिंह जयंती भी है। आज के दिन ही भगवान श्री हरि ने भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु नरसिंह अवतार धारण किया था। आधे नर, आधे सिंह का अद्भुत रूप जो यह संदेश देता है कि जब अन्याय अपनी चरम सीमा पर पहुँचता है, तब सृजनकर्ता स्वयं सृजन के नए स्वरूप में प्रकट होकर अधर्म, अन्याय और अहंकार के विरुद्ध धर्म, करुणा और सत्य की विजय का उद्घोष कर संतुलन स्थापित करते हैं। 
आज के युग में, जब अनेक प्रकार के भटकाव और असत्य के आकर्षण हमारे युवाओं के चारों ओर हैं, ऐसे में भक्त प्रह्लाद का जीवन हमें सिखाता है कि सत्य और भक्ति के मार्ग पर अडिग रहना ही सच्ची विजय है। जब मन में दृढ़ विश्वास हो, तो समूचा ब्रह्मांड भी आपकी रक्षा के लिए उपस्थित हो जाता है।
हिरण्यकशिपु, शक्ति का प्रतीक था, लेकिन उसका अहंकार उसे विनाश की ओर ले गया। जहाँ अहंकार है, वहाँ ईश्वर का वास नहीं होता। आज जब भौतिकता, पद और प्रतिष्ठा की दौड़ में हम अनजाने में अहंकार के शिकार हो जाते हैं, नरसिंह जयंती हमें जागृत करती है कि विनम्रता, सेवा और परोपकार ही स्थायी मूल्य हैं। 
वर्तमान समय में भी यह दुनिया किसी न किसी रूप में हिरण्यकशिपु के अन्याय से जूझ रही है, चाहे वह पर्यावरण का शोषण हो, सामाजिक विषमता हो, आतंकवाद हो या मानसिक अशांति। नरसिंह जयंती का यही आह्वान है कि हम अपने भीतर के ‘प्रह्लाद’ को जागृत करें  विश्वास, भक्ति और सत्य का दीप जलाएं।
हम अपने भीतर छिपे हिरण्यकशिपु अर्थात् क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार का संहार करें। जब हम भीतर से निर्मल होते हैं, तभी बाहर भी धर्म, करुणा और सेवा का सृजन होता है। हर दिन अपने भीतर के प्रह्लाद को पोषित करें और हर परिस्थिति में विश्वास, धैर्य और प्रेम को बनाये रखें। यही आज का युगधर्म है।

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